Tuesday, October 12, 2021

जिनी मेरा बच्चा पार्ट- 2

हालाँकि अपने बचपन में हमारे पास एक इंडी डॉग था , जिसका नाम रॉकी था। पहले घरों में पेडिग्री (डॉग फूड) खिलाने का चलन नहीं था तो वो भी वही खाता था जो हम सब घर में खाते थे। जिनी बहुत छोटी थी इतने छोटे पपी को पालने का मेरा अनुभव नहीं था तो मैंने उसे वैसे ही पालना शुरू किया जैसे मैंने बचपन में रॉकी को पालते देखा था। मैंने रॉकी को कभी ट्रीट्स खाते हुए नहीं देखा था। लेकिन जिनी २०११ में मेरे पास आयी थी तब ट्रीट्स पेट्स को देना प्रचलन में था। 

 

जिनी सुबह जल्दी उठ जाती थी तो सबसे पहले उसे छोटी सी ट्रीट देती थी,फिर कुछ समय बाद थोड़ा सा दूध, फिर एक छोटा सा टुकड़ा सेब ,दोपहर में छोटा सा घी लगा फुल्का , शाम का फिर थोड़ा सा दूध और रात में छोटा सा फुल्का । छोटी सी जिनी अपने आप दूध पी लेती थी। जब उसके दाँत नहीं आये थे तब छोटे बच्चों की तरह ही मैंने दूध पिला कर पाला।छोटे बच्चों की तरह ही वो थोड़ी - थोड़ी देर में सू सू करती थी। बाद में दाँत निकलने के बाद वह रोटी और बिस्किट खा लेती थी।  रोटी के छोटे - छोटे टुकड़े करके मैं उसके बर्तन में रख देती थी वो उसमें से एक - एक टुकड़ा ले कर कमरे में जाकर खाती थी। बहुत अच्छी लगती थी ऐसा करते हुए वो। उसके छोटे -छोटे दाँत बहुत सुन्दर लगते थे। 


जिनी की पहली रात उसके अपने घर में --

जैसा कि मैंने पहले भी आपको बताया कि इतने छोटे बच्ची ( पपी ) को पालने का कोई अनुभव नहीं था तो बच्ची जिनी को रात में हम कैसे सुलायें जिससे वो आराम से सारी रात सो सके।  हमने इसके बारें में सोचा -- हमारे घर में कुछ समय पहले ही ओवन आया था तो उसका बड़ा सा बॉक्स रखा था तो उस बॉक्स में सबसे पहले एक प्लास्टिक शीट और उसके ऊपर कुछ अखबार बिछाये और उसके ऊपर जिनी का छोटा सा घर रख दिया अपने बेड के पास में उस बॉक्स को रख दिया । रात भर हम माँ बेटी तो जागे ही साथ में हमारे घर का वो छोटी सी सदस्य जिनी भी कू - कू की आवाज़ के साथ रात में जागती और सोती रही। कुछ दिन तो हमने  जिनी को ऐसे ही बॉक्स में सुलाया। घर में एक जगह पर अखबार बिछाकर उसके सू - सू करने की जगह नियत की।इस तरह जिनी ने हमें और अपने नये घर को अपना लिया। उसने हमें कुछ भी परेशान नहीं किया। 


जिनी ने मुझे ही नहीं बल्कि घर के हरेक सदस्य को बहुत प्यार दिया। रिनी को , हरीश को और मुझे यानि हम तीनों को उसने बहुत प्यार दिया। हम तीनों में से जो घर में नहीं होता था उसे ही उसकी चिंता रहती थी , उसी का वो इंतज़ार करती थी। हालाँकि शुरू शुरू में मैं उसे अपने पास ज्यादा नहीं बुलाती थी बस मैं उसके खाने - पीने  का ही ध्यान रखती थी लेकिन जिनी ने तो घर में आते ही जैसे मुझे अपनी माँ मान लिया था। मैं खाना बनाती तो वो मेरे पैरों के बीच में आकर सो जाती। मै जहाँ - जहाँ भी जाती वो मेरे साथ - साथ जाती। बाथरूम में जाती तो वो उसके बाहर बैठी रहती। कहीं घर से बाहर जाकर आती तो मेरी पैंट , मेरे गाउन को अपने छोटे से मुँह में दबा कर मेरे साथ - साथ चलती। शुरू - शरू में मुझे इससे चिढ़ भी होती, मुझे समझ नहीं आता कि वो क्यों ऐसा करती है। मैं बाहर से आकर उस पर ध्यान नहीं देती तो मेरी चप्पल पकड़ लेती और मुझे चलने नहीं देती। मुझे उस पर गुस्सा भी आता। उसकी इस वजह से एक बार तो मैं गिर भी गई। मेरे गिरते ही वो बेचारी बहुत डर गयी और चुपचाप आकर मेरे पास बैठ गयी। धीरे - धीरे मुझे समझ में आने लगा कि वो चाहती है कि बाहर से आने के बाद मैं सबसे पहले उसे प्यार करूँ ,उस पर ध्यान दूँ। जैसे मैंने ऐसा करना शुरू किया अपने आप सब ठीक हो गया और उसने मुझे परेशान करना बंद कर दिया। बस इस तरह से मैंने उसे प्यार करना शुरू कर दिया जबकि जिनी तो मुझे पहले से ही प्यार कर रही थी। 


अगस्त में जिनी आयी और उसी साल अक्टूबर में हम दिवाली मनाने अपने दिल्ली वाले घर गये। ४ महीने की छोटी सी जिनी एयर इंडिया की फ्लाइट से दिल्ली पँहुची जबकि हम किसी दूसरी फ्लाइट से। बहुत डर लग रहा था कि कैसे इतना छोटा सा बच्चा हमारे बिना ४ - ५ घंटे रहेगा। जैसे ही हम दिल्ली पँहुचे सबसे पहले हमने उसे कार्गो से उसे रिसीव किया। जब उसे घर से फ्लाइट तक छोड़ा गया होगा तो उसने कैसा महसूस किया होगा ? यह मुझे बाद में उस समय समझ आया जब हम वापस दिल्ली से मुंबई आ रहे थे और फिर हमने उसे कार्गो में छोड़ा तब वो चार महीने की बच्ची बहुत रोयी। उसका इस तरह रोना देखकर उसे केज में छोड़ने का बिलकुल भी मन नहीं कर रहा था ,लेकिन इसके सिवा कोई भी दूसरा हल नहीं था हमारे पास। मुंबई पँहुच कर फिर उसे रिसीव किया तो जो उसका प्यार था वो देखते ही बनता था। 


जैसे हर किसी को घर से बाहर घूमना पसंद होता है, जिनी को भी था। जब वो छोटी थी तब जैसे ही घर का दरवाजा खुलता वो घर से बाहर निकल जाती। जब जिनी घर में हम सबके साथ रहने आयी तब कुछ दिनों तक तो हमने उसकी आवाज़ ही नहीं सुनी कि वो भौंकती कैसे है ? हम आपस में बात करते थे कि कहीं यह गूँगी तो नहीं। लेकिन जब एक दिन घर की घंटी बजी तब उसकी आवाज़ सुनकर वो भौंकी ,तब हमें समझ में आ गया कि नहीं जिनी गूँगी नहीं है। 


जब वह छोटी थी तब कोई भी जूते , मोज़े और चप्पल नहीं छोड़ती थी।  जैसे ही कोई अपने जूते खोलता और अपने मोज़े निकालता वैसे ही वो लेकर भाग जाती। आगे - जिनी और पीछे - पीछे हम , यही दौड़ लगी रहती थी। बड़ा मज़ा आता था हम सभी को।  हमारे घर में एक कम ऊँचा बेड था  जिस पर जिनी कूद कर चढ़ जाती थी। सुबह उठने पर जब हमारी आँखे खुलती तो कभी कोई स्पॉट्स शूज , कभी कोई चप्पल मिलती। कई बार तो ये चप्पल , जूते बिलकुल हमारे मुंह के पास ही होते। तभी भी हमें नाराज़गी नहीं होती। 


२८ सितंबर को जिनी को हमसे बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो गया। एक - एक दिन कैसे मैंने उसके बिना बिताया है, मैं ही जानती हूँ।  'जिनी मेरा बच्चा "  मैं मैंने जो कुछ लिखा है वो बस मेरी और जिनी की यादें हैं या यूँ कहे कि उसे याद करने का मेरा एक तरीका है। वो हमेशा मेरी बेटी रहेगी। एक ऐसी बेटी जो बहुत ही प्यारी थी। उसने मुझे भी प्यार करना सिखाया। आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे दिलों में वो हमेशा ही रहेगी। वो जहाँ भी है खुश रहे। 

मेरी तरफ से उसे ढेर सारा प्यार।   

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