Tuesday, November 23, 2021

जिनी मेरा बच्चा पार्ट- 3

 

जब जिनी के दाँत निकल रहे थे तब उसके मसूढ़ों में खुजली होती थी और वो इधर - उधर , कुछ लकड़ी भी काटती और कई बार हमारे हाथों की उंगलियों को भी धीरे - धीरे चबाती तो ऐसे हम उसे डराने के लिये अखबार रोल करके उसे डराते।  यह बात तब की है जब वह  बहुत छोटी थी।  वह  ज्यादा शैतान नहीं थी इसलिए उसे डाँटने या मारने की जरूरत हमें नहीं थी। जब वह करीब ४ -५ साल की थी तब मैं, जिनी और रिनी तीनों खेल रहे थे तभी मैंने अचानक एक अखबार को हाथ में लेकर उसका रोल बना लिया और मैंने देखा कि जिनी उसे देख कर डर गयी और काँपने लगी। मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्या हुआ उसे। फिर मुझे याद आया कि जब यह छोटी थी तो उसे डराने के लिए हम ऐसे ही अखबार को रोल करते थे।  उस अखबार को देखकर शायद उसे लगा होगा कि कहीं हम उसे फिर से डरा तो नहीं रहे। ऐसी थी मेरी भोली बच्ची।  


बहुत सी बातें, बहुत सी यादें जुडी हैं जिनी के साथ हम सबकी।  जब हम उसे अपने साथ लेकर दिल्ली गये तब वहां थोड़ी सर्दी होने लगी थी। वहाँ रिनी का कजिन अक्षत भी था। दोनों उसे अक्सर गोद में लिये रहते। उसे खाना भी हाथों से खिलाते लिहाज़ा जिनी की आदतें भी बिगड़ गयी। नवम्बर २०११ लेकर २८ सितंबर २०२० तक जब तक वो रही उसने अपने आप से कभी खाना नहीं खाया। कई बार मैंने उसे भूखा भी रहने दिया यह सोचकर कि इस तरह शायद वो फिर से अपने से खाना शुरू कर दे। लेकिन उसने खुद से कभी खाना नहीं खाया चाहे वो इसके लिए कितने ही घंटो ही भूखी रही।


हमारे घर में एक सोफा था। जब जिनी शैतानी करती और उसे हम थोड़ा भी डाँटते तो वो डर से सोफे के नीचे छुप जाती। तब जिनी शायद करीब ६ महीने की होगी। एक बार की बात है उस समय करीब आधी रात हो रही थी।  रिनी की आवाज़ आयी  -- मम्मी जिनी सोफे में फँस गयी है यह सुनकर मुझे बहुत चिंता होने लगी कि हाय क्या हुआ जिनी को ? कैसे वो उसमें फँस गयी। अब आधी रात में हम क्या करेगें।  हरीश भी घर में नहीं थे। फिर मैंने हिम्मत की, सोफे को खड़ा किया और टॉर्च जलायी तो देखा जिनी सोफे में अंदर घुसी हुई है और उसे बाहर निकलने का रास्ता समझ नहीं आ रहा था।क्योंकि उस समय कमरे की लाइट भी बंद थी, कमरे में बहुत अँधेरा।  मैंने सोफे में अंदर हाथ डाल कर जिनी को बाहर निकाला। फिर मैंने सोफे को ध्यान से देखा उसके नीचे जो काला कपड़ा लगा था उसे जिनी ने फाड़ दिया था और जब हम उसे डाँटते तो वो उसके अंदर छिप जाती थी।  


नवम्बर २०११ लेकर २८ सितंबर २०२० तक मैं ही उसे अपने हाथों से खाना खिलाती रही। मुझे भी बहुत अच्छा लगता था उसे प्यार करना , दुलार करना और अपने हाथों से खाना खिलाना। कई बार मेरे वजह से उसे भूखा भी रहना पड़ता था इसका मुझे बहुत ही अफ़सोस भी होता था। लेकिन उसने कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं की, न ही कभी वो मुझे नाराज़ हुई। एक बार कुछ दिनों के लिए मुंबई में मेरी सासू माँ दिल्ली से आयी हुई थी। ऐसे में मैं निश्चिंत होकर अपने काम के सिलसिले में घर से बाहर चली जाती थी यह सोचकर सासू माँ तो घर में हैं हीं। ऐसे में भी जिनी सारे दिन एक ही कोने में कुर्सी के नीचे सोती रहती । वो उसे खाना भी खिलाना चाहती लेकिन उनके हाथों वो खाना नहीं खाती। जैसे ही मैं घर में आती वो मुझे उसके बारें में बताती कि इसने आज कुछ भी नहीं खाया। यह सुनकर जब मैं उसे खाना खिलाती तो जिनी बहुत खुश होकर खेल - खेल कर अपना सारा खाना खत्म कर लेती।  सासू माँ कहती --" मैं भी तो खिला रही थी लेकिन मुझसे नहीं खाया। इसके हाथ में क्या कुछ विशेष लगा है। " मुझे हँसी भी आती उनकी बातों को सुनकर जिनी पर प्यार भी आता। जिनी को कभी भी मैंने कुत्ता समझ कर दुत्कारा नहीं बस जब वो आयी थी तब शुरू शुरू के दिनों में मैंने उसे थोड़ा कम प्यार दिया। इसका मुझे आज भी बहुत अहसास है कि क्यों मुझसे ऐसा हुआ ? मैंने ऐसा क्यों किया ?


जब से जिनी घर में आयी तब से लेकर जब तक वो इस दुनिया में रही मेरे पास। ऐसा मैंने कभी नहीं किया कि उसे मैंने सबसे आखिरी में यानि घर के बाकी सदस्यों के खाने के बाद उसे खाना दिया हो। जब वो रोटी खाती थी तो सबसे पहले मैं उसे ही रोटी खिलाती थी और जब से उसने पेडिग्री खानी शुरू की तो भी मैं  ऐसा ही करती ,क्योंकि वह हमारे घर का सबसे छोटा बच्चा था।


एक बार की बात है। तब हम मुंबई में रहते थे , मैं उस समय घर पर नहीं थी।  सासू माँ , पिताजी और जिनी घर पर थे, रिनी स्कूल गयी हुई थी। पिताजी ने मेडिकल स्टोर से दवाई मंगायी थी।  स्टोर से दो लड़के दवाई देने घर आये थे। जैसे ही घर का दरवाजा खुला जिनी बाहर चली गयी। जब वो छोटी थी तब वो ऐसा ही करती  थी, क्योंकि उसे बाहर घूमने का बहुत शौक था । जब मैं घर पर होती थी तब मैं हमेशा उसका ध्यान रखती कि कहीं वो बाहर न निकल जाये। पिताजी ने दरवाजा खोला, दवाइयाँ ली।  इसी बीच में जिनी शायद घर से बाहर निकल गयी और उन्हें इसका पता ही नहीं चला। सोसायटी का एक वाचमैन भी घर आया यह पूछने के लिये कि "क्या आपका डॉगी  घर में है , घर वालों को लगा कि जिनी घर में ही है तो उन्होंने कह दिया कि हाँ -- हमारा डॉगी घर में ही है।जब दो बजे रिनी स्कूल से घर आयी तो उसने सोसायटी में नीचे देखा कि वॉचमैन के कमरे के बाहर एक रस्सी से जिनी बंधी हुई है। उसे देखकर रिनी को कुछ समझ नहीं आया। जब वो जिनी को अपने साथ लेकर घर गयी तब पिताजी को समझ आया कि क्या हुआ होगा।रिनी ने घर आकर मुझे फोन किया "मम्मी आप जल्दी घर आओ आज जिनी खो जाती" मेरा इतना सुनना था बस मेरे तो पैरों नीचे से जमीन खिसक गयी। मैं जैसे - तैसे घर आयी। मैने सबकी सारी बातें सुनी  और जिनी को गोद में लेकर खूब प्यार किया और  फिर शाम को उस वॉचमैन का शुक्रिया किया। जिसने जिनी को सोसायटी से बाहर नहीं जाने दिया।  


इसी तरह दो बार और हुआ। कब कोई आया,घर का दरवाजा खुला और वो घर से बाहर निकला गयी ,पता ही नहीं चला। एक बार हम तीनों यानि मैं, हरीश और रिनी घर पर थे।  रात यानि देर रात की बात है। मैं कम्प्यूटर पर कुछ काम कर रही थी, जबकि रिनी टी वी देख रही थी और करीब ११ बजे हरीश सोने चले गये। हमें लगा जिनी भी हरीश के साथ कमरे में सोने चली गयी।  हालाँकि मैंने जिनी को अन्दर जाते हुए नहीं देखा था ,  फिर भी मुझे लगा कि शायद वो अन्दर ही होगी। मैंने रिनी से जिनी के बारें में पूछा ? वो बोली --पापा के साथ अंदर वाले कमरे है। यह सुनकर मैं भी निश्चिंत हो गयी और अपना काम करने लगी। उस दिन जब मैंने अपना काम ख़तम किया तब रात के डेढ़ बज रहे थे। मैं अन्दर गयी जिनी मुझे नहीं दिखाई दी । फिर मैंने घर के हरेक कोने में उसे देखा। यहाँ तक कि बाथरूम में भी देखा क्योंकि कई बार पहले भी हो चुका था जब वो बाथरूम में चली गयी और दरवाजा अपने से बंद हो गया और वो अंदर रही। हमे उसे ढूँढते रहे फिर ध्यान आया कि कहीं बाथरूम में तो जिनी में तो नहीं। मेरी तो हालत ख़राब हो गयी यह सोच कर कि इतनी रात में वो कहाँ गयी होगी। किसी ने उसे चुरा लिया और भी न जाने कितने बुरे ख्याल आने लगे दिलों - दिमाग में। मैंने सो रहे हरीश को जगाया कि हरीश जिनी घर में नहीं है। यह सुनकर हरीश भी हड़बड़ा कर उठे और बिल्डिंग में नीचे गये जिनी को ढूंढने। हरीश के साथ रिनी भी गयी। मेरा तो रोकर रोकर बहुत बुरा हाल हो गया मैं भी गयी उसे ढूँढने ,क्योंकि मैं इन दोनों के आने का इंतज़ार नहीं कर सकी। नीचे जाकर देखा तो रिनी उसे अपनी गोद  उठाये चली आ रही है। मैंने उससे पूछा , यह कहाँ मिली ? तो बोली --बिल्डिंग के अंदर ही कचरे के डिब्बे के पास बेचारी चुपचाप बैठी हुई थी" रिनी और हरीश देखकर वो बहुत खुश हुई। उसे देखकर मैं भी बहुत खुश हुई लेकिन मुझे उस पर गुस्सा भी बहुत आया। पहले तो मैंने  जिनी को अपनी गोद में लिया और फिर गुस्से में उसे कुछ थप्पड़ भी मारे, फिर उसे प्यार किया और गले लगा कर खूब रोई। वो बेचारी भी मेरी गोद में चुपचाप बैठी रही। शायद उसे भी समझ में आ गया था कि कुछ घण्टों के लिए वो भी अपने घर वालों से बिछुड़ गयी थी।


तीसरी बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।  रात में करीब ११ बजकर ३० मिनट पर डोर बेल बजी।  मैं और रिनी दोनों अपना कुछ काम कर रहे थे। मैंने सोचा इतनी रात कौन होगा ? रिनी से बोला -- देख कौन है ?। हमारे घर में दो दरवाजे थे पहला लकड़ी का और दूसरा भी लकड़ी का लेकिन उसमें एक छोटी से खिड़की जैसी बनी हुई थी। कोई आता तो पहले हम उसमें से देख लेते फिर दरवाजा खोलते। तो रिनी ने पहला दरवाजा खोला और  देखा कि ऊपर के फ्लैट में रहने वाला एक लड़का खड़ा है।  वो रिनी से बोला कि आपका डॉगी कहाँ है ? रिनी बोली वो तो घर पर ही है। वो बेचारा शरीफ लड़का बोला कि एक बार देख तो लीजिये कहीं यह डॉगी आपका तो नहीं है। जब रिनी ने देखा तो जिनी उस लड़के के साथ खड़ी थी। हमें समझ ही नहीं आया कि वो कब से घर बाहर गयी। इस घटना के बाद तो हम सभी बेहद सतर्क लगे कि पता नहीं कब वो घर बाहर निकल जाये।


थोड़ी देर के लिये हमसे वो बिछुड़ी थी तो हम सब पागल हो गये थे। अब जबकि वो हमेशा के लिये हमसे बिछुड़ गयी है तो आप ही सोचिये हम कैसे अपने को संभाले। बहुत सारे लोगों को लगेगा हम सब एक कुत्ते के बारें लिख कर या पढ़ कर अपना समय बर्बाद कर रहे हैं।  नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं है। जिस किसी ने भी एक बार भी कभी कोई पैट  अपने घर में लाया होगा और उसने उसे अपने घर का सदस्य माना होगा और जब कभी भी वो उससे बिछुड़ा होगा वो भली भाँति हमारे दर्द से परिचित होगा। जिनी एक कुत्ता की पैदाइश जरूर थी लेकिन वो थी बिलकुल ही शांत। छोटी थी तब उसने जरूर शैतानियाँ की, जैसे सभी बच्चे करते हैं लेकिन उसने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे हमारा कोई भी नुकसान हुआ हो।                   


२८ सितंबर को जिनी को हमसे बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो गया। एक - एक दिन कैसे मैंने उसके बिना बिताया है, मैं ही जानती हूँ।  'जिनी मेरा बच्चा "  मैं मैंने जो कुछ लिखा है वो बस मेरी और जिनी की यादें हैं या यूँ कहे कि उसे याद करने का मेरा एक तरीका है। वो हमेशा मेरी बेटी रहेगी। एक ऐसी बेटी जो बहुत ही प्यारी थी। उसने मुझे भी प्यार करना सिखाया। आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे दिलों में वो हमेशा ही रहेगी। वो जहाँ भी है खुश रहे। 

मेरी तरफ से उसे ढेर सारा प्यार।   

Tuesday, October 12, 2021

जिनी मेरा बच्चा पार्ट- 2

हालाँकि अपने बचपन में हमारे पास एक इंडी डॉग था , जिसका नाम रॉकी था। पहले घरों में पेडिग्री (डॉग फूड) खिलाने का चलन नहीं था तो वो भी वही खाता था जो हम सब घर में खाते थे। जिनी बहुत छोटी थी इतने छोटे पपी को पालने का मेरा अनुभव नहीं था तो मैंने उसे वैसे ही पालना शुरू किया जैसे मैंने बचपन में रॉकी को पालते देखा था। मैंने रॉकी को कभी ट्रीट्स खाते हुए नहीं देखा था। लेकिन जिनी २०११ में मेरे पास आयी थी तब ट्रीट्स पेट्स को देना प्रचलन में था। 

 

जिनी सुबह जल्दी उठ जाती थी तो सबसे पहले उसे छोटी सी ट्रीट देती थी,फिर कुछ समय बाद थोड़ा सा दूध, फिर एक छोटा सा टुकड़ा सेब ,दोपहर में छोटा सा घी लगा फुल्का , शाम का फिर थोड़ा सा दूध और रात में छोटा सा फुल्का । छोटी सी जिनी अपने आप दूध पी लेती थी। जब उसके दाँत नहीं आये थे तब छोटे बच्चों की तरह ही मैंने दूध पिला कर पाला।छोटे बच्चों की तरह ही वो थोड़ी - थोड़ी देर में सू सू करती थी। बाद में दाँत निकलने के बाद वह रोटी और बिस्किट खा लेती थी।  रोटी के छोटे - छोटे टुकड़े करके मैं उसके बर्तन में रख देती थी वो उसमें से एक - एक टुकड़ा ले कर कमरे में जाकर खाती थी। बहुत अच्छी लगती थी ऐसा करते हुए वो। उसके छोटे -छोटे दाँत बहुत सुन्दर लगते थे। 


जिनी की पहली रात उसके अपने घर में --

जैसा कि मैंने पहले भी आपको बताया कि इतने छोटे बच्ची ( पपी ) को पालने का कोई अनुभव नहीं था तो बच्ची जिनी को रात में हम कैसे सुलायें जिससे वो आराम से सारी रात सो सके।  हमने इसके बारें में सोचा -- हमारे घर में कुछ समय पहले ही ओवन आया था तो उसका बड़ा सा बॉक्स रखा था तो उस बॉक्स में सबसे पहले एक प्लास्टिक शीट और उसके ऊपर कुछ अखबार बिछाये और उसके ऊपर जिनी का छोटा सा घर रख दिया अपने बेड के पास में उस बॉक्स को रख दिया । रात भर हम माँ बेटी तो जागे ही साथ में हमारे घर का वो छोटी सी सदस्य जिनी भी कू - कू की आवाज़ के साथ रात में जागती और सोती रही। कुछ दिन तो हमने  जिनी को ऐसे ही बॉक्स में सुलाया। घर में एक जगह पर अखबार बिछाकर उसके सू - सू करने की जगह नियत की।इस तरह जिनी ने हमें और अपने नये घर को अपना लिया। उसने हमें कुछ भी परेशान नहीं किया। 


जिनी ने मुझे ही नहीं बल्कि घर के हरेक सदस्य को बहुत प्यार दिया। रिनी को , हरीश को और मुझे यानि हम तीनों को उसने बहुत प्यार दिया। हम तीनों में से जो घर में नहीं होता था उसे ही उसकी चिंता रहती थी , उसी का वो इंतज़ार करती थी। हालाँकि शुरू शुरू में मैं उसे अपने पास ज्यादा नहीं बुलाती थी बस मैं उसके खाने - पीने  का ही ध्यान रखती थी लेकिन जिनी ने तो घर में आते ही जैसे मुझे अपनी माँ मान लिया था। मैं खाना बनाती तो वो मेरे पैरों के बीच में आकर सो जाती। मै जहाँ - जहाँ भी जाती वो मेरे साथ - साथ जाती। बाथरूम में जाती तो वो उसके बाहर बैठी रहती। कहीं घर से बाहर जाकर आती तो मेरी पैंट , मेरे गाउन को अपने छोटे से मुँह में दबा कर मेरे साथ - साथ चलती। शुरू - शरू में मुझे इससे चिढ़ भी होती, मुझे समझ नहीं आता कि वो क्यों ऐसा करती है। मैं बाहर से आकर उस पर ध्यान नहीं देती तो मेरी चप्पल पकड़ लेती और मुझे चलने नहीं देती। मुझे उस पर गुस्सा भी आता। उसकी इस वजह से एक बार तो मैं गिर भी गई। मेरे गिरते ही वो बेचारी बहुत डर गयी और चुपचाप आकर मेरे पास बैठ गयी। धीरे - धीरे मुझे समझ में आने लगा कि वो चाहती है कि बाहर से आने के बाद मैं सबसे पहले उसे प्यार करूँ ,उस पर ध्यान दूँ। जैसे मैंने ऐसा करना शुरू किया अपने आप सब ठीक हो गया और उसने मुझे परेशान करना बंद कर दिया। बस इस तरह से मैंने उसे प्यार करना शुरू कर दिया जबकि जिनी तो मुझे पहले से ही प्यार कर रही थी। 


अगस्त में जिनी आयी और उसी साल अक्टूबर में हम दिवाली मनाने अपने दिल्ली वाले घर गये। ४ महीने की छोटी सी जिनी एयर इंडिया की फ्लाइट से दिल्ली पँहुची जबकि हम किसी दूसरी फ्लाइट से। बहुत डर लग रहा था कि कैसे इतना छोटा सा बच्चा हमारे बिना ४ - ५ घंटे रहेगा। जैसे ही हम दिल्ली पँहुचे सबसे पहले हमने उसे कार्गो से उसे रिसीव किया। जब उसे घर से फ्लाइट तक छोड़ा गया होगा तो उसने कैसा महसूस किया होगा ? यह मुझे बाद में उस समय समझ आया जब हम वापस दिल्ली से मुंबई आ रहे थे और फिर हमने उसे कार्गो में छोड़ा तब वो चार महीने की बच्ची बहुत रोयी। उसका इस तरह रोना देखकर उसे केज में छोड़ने का बिलकुल भी मन नहीं कर रहा था ,लेकिन इसके सिवा कोई भी दूसरा हल नहीं था हमारे पास। मुंबई पँहुच कर फिर उसे रिसीव किया तो जो उसका प्यार था वो देखते ही बनता था। 


जैसे हर किसी को घर से बाहर घूमना पसंद होता है, जिनी को भी था। जब वो छोटी थी तब जैसे ही घर का दरवाजा खुलता वो घर से बाहर निकल जाती। जब जिनी घर में हम सबके साथ रहने आयी तब कुछ दिनों तक तो हमने उसकी आवाज़ ही नहीं सुनी कि वो भौंकती कैसे है ? हम आपस में बात करते थे कि कहीं यह गूँगी तो नहीं। लेकिन जब एक दिन घर की घंटी बजी तब उसकी आवाज़ सुनकर वो भौंकी ,तब हमें समझ में आ गया कि नहीं जिनी गूँगी नहीं है। 


जब वह छोटी थी तब कोई भी जूते , मोज़े और चप्पल नहीं छोड़ती थी।  जैसे ही कोई अपने जूते खोलता और अपने मोज़े निकालता वैसे ही वो लेकर भाग जाती। आगे - जिनी और पीछे - पीछे हम , यही दौड़ लगी रहती थी। बड़ा मज़ा आता था हम सभी को।  हमारे घर में एक कम ऊँचा बेड था  जिस पर जिनी कूद कर चढ़ जाती थी। सुबह उठने पर जब हमारी आँखे खुलती तो कभी कोई स्पॉट्स शूज , कभी कोई चप्पल मिलती। कई बार तो ये चप्पल , जूते बिलकुल हमारे मुंह के पास ही होते। तभी भी हमें नाराज़गी नहीं होती। 


२८ सितंबर को जिनी को हमसे बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो गया। एक - एक दिन कैसे मैंने उसके बिना बिताया है, मैं ही जानती हूँ।  'जिनी मेरा बच्चा "  मैं मैंने जो कुछ लिखा है वो बस मेरी और जिनी की यादें हैं या यूँ कहे कि उसे याद करने का मेरा एक तरीका है। वो हमेशा मेरी बेटी रहेगी। एक ऐसी बेटी जो बहुत ही प्यारी थी। उसने मुझे भी प्यार करना सिखाया। आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे दिलों में वो हमेशा ही रहेगी। वो जहाँ भी है खुश रहे। 

मेरी तरफ से उसे ढेर सारा प्यार।   

Thursday, September 23, 2021

जिनी मेरा बच्चा - पार्ट 1

 जिनी मेरा बच्चा --

१ अगस्त २०११ को एक महीना ५ दिन की वो छोटी सी बच्ची जिनी (पग ) मेरे घर आयी। वो इतनी छोटी थी कि मेरी एक हथेली में समा जाती थी। उसे अपने हाथों में उठाते हुए मुझे बहुत ही डर लगता था। छोटे छोटे हाथ - पैर उसके, चलते - चलते अपने आप ही गिर जाती थी।  सोच कर बहुत ही डर लगता था कि इतने छोटे पपी को हम कैसे पालेगें ? मैं अपनी बेटी रिनी पर नाराज भी होती थी कि वो क्यों उसे लायी ?जबकि रिनी की ८ सालों की जिद की वजह से ही जिनी हमारे घर आयी थी। 


जिनी को घर लाने से पहले रिनी की जिद से ऑन लाइन हमने बहुत सारे कुत्ते देखे कि किसे हम पाल सकते हैं क्योंकि बड़े आकार के कुत्तों को पालना कोई आसान काम नहीं है वो भी मुंबई के २ बी एच के फ्लैट में। रिनी को बीगल ब्रीड का कुत्ता लेना था क्योंकि वही उसकी पसंद थी जबकि मुझे इनकी नस्ल की कोई विशेष जानकारी नहीं थी। मैं तो बस रिनी को खुश करने के लिये एक छोटे से आकार वाला डॉगी लाना चाहती थी जिसकी देखभाल करना आसान हो, वो भी इस शर्त पर कि उसकी सारी देखभाल सिर्फ उसे ही करनी है मुझसे किसी भी तरह की वो उम्मीद न करे।

 

रिनी के पापा हरीश शर्मा ने किसी परिचित से मालूम किया कि कहाँ से हम एक पपी ला सकते हैं ? तय तारीख़ में यानि १ अगस्त को रिनी गयी अपनी पसंद का बीगल पपी लेने लेकिन आयी पग पपी को लेकर। ९ क्लास में पड़ने वाली रिनी अपने हाथों में एक पग पपी को लिये घर आयी , पपी के साजो सामान के साथ , जिसमें उसका छोटा सा हरे रंग का हॉउस , खिलौने , खाना ( पेडिग्री  ) शैंपू , कंघी आदि था। लेकिन मेरे में कोई विशेष उत्साह नहीं था उस पग को लेकर , क्योंकि मैं तो बस उसकी जिद के आगे झुकी थी दूसरा मुझे अनुमान था कि यह लेकर तो इसे आयी है यह कह कर कि उसकी देख रेख वो ही करेगी जबकि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है।  घर के साथ - साथ मुझे ही इसका भी काम करना पड़ेगा और आगे चलकर ऐसा हुआ भी। 


जब रिनी पपी को घर लाने की बात कर रही थी, तब ही उसका नाम क्या रखेंगे इस पर भी बहुत चर्चा हुई।  रिनी ने कई अंग्रेजी नाम सुझाये जो कि मुझे तो बिलकुल भी समझ में नहीं आये और इसी तरह मेरे सुझाये नाम भी उसे बिलकुल पसंद नहीं आये। इसी बीच वो दिन भी आ गया जब पपी हमारे घर आ गया। तब मैंने पपी का नाम जिनी रख दिया यह सोच कर कि रिनी ही उसे लायी है तो उसके नाम से मिलता जुलता नाम हो गया जिनी। जब जिनी घर आयी तब रिनी उसकी माँ बनी और मैं जिनी की नानी। लेकिन पता ही नहीं चला मैं कब जिनी का माँ, उसकी सब कुछ बन गयी और वो मेरी।



२८ सितंबर को जिनी को हमसे बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो जायेगा । एक - एक दिन कैसे मैंने उसके बिना बिताया है, मैं ही जानती हूँ।  'जिनी मेरा बच्चा "  मैं मैंने जो कुछ लिखा है वो बस मेरी और जिनी की यादें हैं या यूँ कहे कि उसे याद करने का मेरा एक तरीका है। वो हमेशा मेरी बेटी रहेगी। एक ऐसी बेटी जो बहुत ही प्यारी थी। उसने मुझे भी प्यार करना सिखाया। आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे दिलों में वो हमेशा ही रहेगी। वो जहाँ भी है खुश रहे। 
मेरी तरफ से उसे ढेर सारा प्यार।    

Saturday, June 24, 2017

ऐसी है हमारी प्यारी जिनी

 आज यानि 25 जून को पूरे 6 साल की हो गयी। इन 6 सालों में उसने हम सबको बहुत प्यार दिया। हम तीनों यानि मेरे पति ,मेरी बेटी और मुझे सभी को बहुत प्यार दिया। हम तीनों का प्यार भी उसके प्यार से कुछ कम ही होगा। सुख में दुख में हमेशा वो हमारे साथ है। इशारे से ही सारी बातें समझ जाना, घर में आने वाले हर मेहमान को प्यार करना उसकी आदत है। गुस्सा न करना , जिद करना उसे आता ही नही । गलती होने पर डाँट खाने पर भी पास में आना और लगातार मेरे चेहरे को देखते रहना कि एक बार बस मैं उसे प्यार करूँ। बहुत सारी ऐसी बातें हैं उसकी , जो उसे प्यार करने पर मजबूर करती हैं।             
  आम खाना इसे बहुत पसन्द है जब छोटी थी तो जहाँ आम रखें हो उस जगह से हटती नही थी, उन्हें आवाज़ देती थी। हमारे जीवन का बहुत ही जरूरी हिस्सा, परिवार का अभिन्न अंग है जिनी। इसके हमारे घर आने से हमारा परिवार पूरा हुआ।
जिनी के बिना जीने की कल्पना ही नही की जा सकती। उसे घर के सभी सदस्य एक साथ चाहिए कोई अगर एक नही हो घर में तो उसका ही इंतज़ार करेगी। उससे मैंने सीखा निस्वार्थ प्यार करना । बाहर घूमने और मिल्क ट्रीट के लिये दीवानी जिनी स्वस्थ रहें। बस यही भगवान से प्रार्थना है। वैसे जो मुझसे परीचित हैं वो सभी जानते है कौन है जिनी ,जो नहीं जानते वो उसकी तस्वीर देखकर समझ जायेंगे। 
जिनी बहुत सारा प्यार तुम्हें।

Thursday, June 25, 2015

४ साल की जिनी

आज यानि २५ जून को जिनी ४ साल की हो गयी। आज उसका चौथा जन्मदिवस है।
 इन ४ सालों में मैं जब भी उससे दूर गयी किसी न किसी मजबूरी से. उससे दूर होने का जरा भी मन नही करता है दूर होने पर भी मैं घर वालों से बस उसके बारें में बात करती हूँ। जिनी को  मैं प्यार से कई नामों से पुकारती हूँ जैसे जब मेरी बेटी छोटी थी मैं उसे पुकारती थी।  यह सब सुनकर मेरी बेटी कहती है पहले तो आप मुझे ऐसे बुलाती थी अब उसे बुलाती हो कभी मुझे भी ऐसे प्यार से बुलाया करो।  उसकी ये बातें सुनकर, उसकी थोड़ी सी ईर्ष्या देख कर मुझे हंसी भी आती है , मैं उससे कहती हूँ  इसे तो तू ही लायी थी यह तेरी है इसलिये मैं उसे तेरे ही नामों से बुलाती हूँ।

चार साल से जिनी हमारे परिवार का एक अभिन्न अंग बन गयी है। घर के सभी सदस्यों की दुलारी जिनी हम सभी घर के सदस्यों को अकेले उतना प्यार देती है जितना प्यार हम तीनो मिलकर उसे देते हैं कभी वो मेरे पास , कभी मेरे पति के पास तो कभी बेटी के पास रह कर अपना प्यार देती है।
तो ऐसी है हम सबकी प्यारी जिनी।