Tuesday, November 23, 2021

जिनी मेरा बच्चा पार्ट- 3

 

जब जिनी के दाँत निकल रहे थे तब उसके मसूढ़ों में खुजली होती थी और वो इधर - उधर , कुछ लकड़ी भी काटती और कई बार हमारे हाथों की उंगलियों को भी धीरे - धीरे चबाती तो ऐसे हम उसे डराने के लिये अखबार रोल करके उसे डराते।  यह बात तब की है जब वह  बहुत छोटी थी।  वह  ज्यादा शैतान नहीं थी इसलिए उसे डाँटने या मारने की जरूरत हमें नहीं थी। जब वह करीब ४ -५ साल की थी तब मैं, जिनी और रिनी तीनों खेल रहे थे तभी मैंने अचानक एक अखबार को हाथ में लेकर उसका रोल बना लिया और मैंने देखा कि जिनी उसे देख कर डर गयी और काँपने लगी। मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्या हुआ उसे। फिर मुझे याद आया कि जब यह छोटी थी तो उसे डराने के लिए हम ऐसे ही अखबार को रोल करते थे।  उस अखबार को देखकर शायद उसे लगा होगा कि कहीं हम उसे फिर से डरा तो नहीं रहे। ऐसी थी मेरी भोली बच्ची।  


बहुत सी बातें, बहुत सी यादें जुडी हैं जिनी के साथ हम सबकी।  जब हम उसे अपने साथ लेकर दिल्ली गये तब वहां थोड़ी सर्दी होने लगी थी। वहाँ रिनी का कजिन अक्षत भी था। दोनों उसे अक्सर गोद में लिये रहते। उसे खाना भी हाथों से खिलाते लिहाज़ा जिनी की आदतें भी बिगड़ गयी। नवम्बर २०११ लेकर २८ सितंबर २०२० तक जब तक वो रही उसने अपने आप से कभी खाना नहीं खाया। कई बार मैंने उसे भूखा भी रहने दिया यह सोचकर कि इस तरह शायद वो फिर से अपने से खाना शुरू कर दे। लेकिन उसने खुद से कभी खाना नहीं खाया चाहे वो इसके लिए कितने ही घंटो ही भूखी रही।


हमारे घर में एक सोफा था। जब जिनी शैतानी करती और उसे हम थोड़ा भी डाँटते तो वो डर से सोफे के नीचे छुप जाती। तब जिनी शायद करीब ६ महीने की होगी। एक बार की बात है उस समय करीब आधी रात हो रही थी।  रिनी की आवाज़ आयी  -- मम्मी जिनी सोफे में फँस गयी है यह सुनकर मुझे बहुत चिंता होने लगी कि हाय क्या हुआ जिनी को ? कैसे वो उसमें फँस गयी। अब आधी रात में हम क्या करेगें।  हरीश भी घर में नहीं थे। फिर मैंने हिम्मत की, सोफे को खड़ा किया और टॉर्च जलायी तो देखा जिनी सोफे में अंदर घुसी हुई है और उसे बाहर निकलने का रास्ता समझ नहीं आ रहा था।क्योंकि उस समय कमरे की लाइट भी बंद थी, कमरे में बहुत अँधेरा।  मैंने सोफे में अंदर हाथ डाल कर जिनी को बाहर निकाला। फिर मैंने सोफे को ध्यान से देखा उसके नीचे जो काला कपड़ा लगा था उसे जिनी ने फाड़ दिया था और जब हम उसे डाँटते तो वो उसके अंदर छिप जाती थी।  


नवम्बर २०११ लेकर २८ सितंबर २०२० तक मैं ही उसे अपने हाथों से खाना खिलाती रही। मुझे भी बहुत अच्छा लगता था उसे प्यार करना , दुलार करना और अपने हाथों से खाना खिलाना। कई बार मेरे वजह से उसे भूखा भी रहना पड़ता था इसका मुझे बहुत ही अफ़सोस भी होता था। लेकिन उसने कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं की, न ही कभी वो मुझे नाराज़ हुई। एक बार कुछ दिनों के लिए मुंबई में मेरी सासू माँ दिल्ली से आयी हुई थी। ऐसे में मैं निश्चिंत होकर अपने काम के सिलसिले में घर से बाहर चली जाती थी यह सोचकर सासू माँ तो घर में हैं हीं। ऐसे में भी जिनी सारे दिन एक ही कोने में कुर्सी के नीचे सोती रहती । वो उसे खाना भी खिलाना चाहती लेकिन उनके हाथों वो खाना नहीं खाती। जैसे ही मैं घर में आती वो मुझे उसके बारें में बताती कि इसने आज कुछ भी नहीं खाया। यह सुनकर जब मैं उसे खाना खिलाती तो जिनी बहुत खुश होकर खेल - खेल कर अपना सारा खाना खत्म कर लेती।  सासू माँ कहती --" मैं भी तो खिला रही थी लेकिन मुझसे नहीं खाया। इसके हाथ में क्या कुछ विशेष लगा है। " मुझे हँसी भी आती उनकी बातों को सुनकर जिनी पर प्यार भी आता। जिनी को कभी भी मैंने कुत्ता समझ कर दुत्कारा नहीं बस जब वो आयी थी तब शुरू शुरू के दिनों में मैंने उसे थोड़ा कम प्यार दिया। इसका मुझे आज भी बहुत अहसास है कि क्यों मुझसे ऐसा हुआ ? मैंने ऐसा क्यों किया ?


जब से जिनी घर में आयी तब से लेकर जब तक वो इस दुनिया में रही मेरे पास। ऐसा मैंने कभी नहीं किया कि उसे मैंने सबसे आखिरी में यानि घर के बाकी सदस्यों के खाने के बाद उसे खाना दिया हो। जब वो रोटी खाती थी तो सबसे पहले मैं उसे ही रोटी खिलाती थी और जब से उसने पेडिग्री खानी शुरू की तो भी मैं  ऐसा ही करती ,क्योंकि वह हमारे घर का सबसे छोटा बच्चा था।


एक बार की बात है। तब हम मुंबई में रहते थे , मैं उस समय घर पर नहीं थी।  सासू माँ , पिताजी और जिनी घर पर थे, रिनी स्कूल गयी हुई थी। पिताजी ने मेडिकल स्टोर से दवाई मंगायी थी।  स्टोर से दो लड़के दवाई देने घर आये थे। जैसे ही घर का दरवाजा खुला जिनी बाहर चली गयी। जब वो छोटी थी तब वो ऐसा ही करती  थी, क्योंकि उसे बाहर घूमने का बहुत शौक था । जब मैं घर पर होती थी तब मैं हमेशा उसका ध्यान रखती कि कहीं वो बाहर न निकल जाये। पिताजी ने दरवाजा खोला, दवाइयाँ ली।  इसी बीच में जिनी शायद घर से बाहर निकल गयी और उन्हें इसका पता ही नहीं चला। सोसायटी का एक वाचमैन भी घर आया यह पूछने के लिये कि "क्या आपका डॉगी  घर में है , घर वालों को लगा कि जिनी घर में ही है तो उन्होंने कह दिया कि हाँ -- हमारा डॉगी घर में ही है।जब दो बजे रिनी स्कूल से घर आयी तो उसने सोसायटी में नीचे देखा कि वॉचमैन के कमरे के बाहर एक रस्सी से जिनी बंधी हुई है। उसे देखकर रिनी को कुछ समझ नहीं आया। जब वो जिनी को अपने साथ लेकर घर गयी तब पिताजी को समझ आया कि क्या हुआ होगा।रिनी ने घर आकर मुझे फोन किया "मम्मी आप जल्दी घर आओ आज जिनी खो जाती" मेरा इतना सुनना था बस मेरे तो पैरों नीचे से जमीन खिसक गयी। मैं जैसे - तैसे घर आयी। मैने सबकी सारी बातें सुनी  और जिनी को गोद में लेकर खूब प्यार किया और  फिर शाम को उस वॉचमैन का शुक्रिया किया। जिसने जिनी को सोसायटी से बाहर नहीं जाने दिया।  


इसी तरह दो बार और हुआ। कब कोई आया,घर का दरवाजा खुला और वो घर से बाहर निकला गयी ,पता ही नहीं चला। एक बार हम तीनों यानि मैं, हरीश और रिनी घर पर थे।  रात यानि देर रात की बात है। मैं कम्प्यूटर पर कुछ काम कर रही थी, जबकि रिनी टी वी देख रही थी और करीब ११ बजे हरीश सोने चले गये। हमें लगा जिनी भी हरीश के साथ कमरे में सोने चली गयी।  हालाँकि मैंने जिनी को अन्दर जाते हुए नहीं देखा था ,  फिर भी मुझे लगा कि शायद वो अन्दर ही होगी। मैंने रिनी से जिनी के बारें में पूछा ? वो बोली --पापा के साथ अंदर वाले कमरे है। यह सुनकर मैं भी निश्चिंत हो गयी और अपना काम करने लगी। उस दिन जब मैंने अपना काम ख़तम किया तब रात के डेढ़ बज रहे थे। मैं अन्दर गयी जिनी मुझे नहीं दिखाई दी । फिर मैंने घर के हरेक कोने में उसे देखा। यहाँ तक कि बाथरूम में भी देखा क्योंकि कई बार पहले भी हो चुका था जब वो बाथरूम में चली गयी और दरवाजा अपने से बंद हो गया और वो अंदर रही। हमे उसे ढूँढते रहे फिर ध्यान आया कि कहीं बाथरूम में तो जिनी में तो नहीं। मेरी तो हालत ख़राब हो गयी यह सोच कर कि इतनी रात में वो कहाँ गयी होगी। किसी ने उसे चुरा लिया और भी न जाने कितने बुरे ख्याल आने लगे दिलों - दिमाग में। मैंने सो रहे हरीश को जगाया कि हरीश जिनी घर में नहीं है। यह सुनकर हरीश भी हड़बड़ा कर उठे और बिल्डिंग में नीचे गये जिनी को ढूंढने। हरीश के साथ रिनी भी गयी। मेरा तो रोकर रोकर बहुत बुरा हाल हो गया मैं भी गयी उसे ढूँढने ,क्योंकि मैं इन दोनों के आने का इंतज़ार नहीं कर सकी। नीचे जाकर देखा तो रिनी उसे अपनी गोद  उठाये चली आ रही है। मैंने उससे पूछा , यह कहाँ मिली ? तो बोली --बिल्डिंग के अंदर ही कचरे के डिब्बे के पास बेचारी चुपचाप बैठी हुई थी" रिनी और हरीश देखकर वो बहुत खुश हुई। उसे देखकर मैं भी बहुत खुश हुई लेकिन मुझे उस पर गुस्सा भी बहुत आया। पहले तो मैंने  जिनी को अपनी गोद में लिया और फिर गुस्से में उसे कुछ थप्पड़ भी मारे, फिर उसे प्यार किया और गले लगा कर खूब रोई। वो बेचारी भी मेरी गोद में चुपचाप बैठी रही। शायद उसे भी समझ में आ गया था कि कुछ घण्टों के लिए वो भी अपने घर वालों से बिछुड़ गयी थी।


तीसरी बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।  रात में करीब ११ बजकर ३० मिनट पर डोर बेल बजी।  मैं और रिनी दोनों अपना कुछ काम कर रहे थे। मैंने सोचा इतनी रात कौन होगा ? रिनी से बोला -- देख कौन है ?। हमारे घर में दो दरवाजे थे पहला लकड़ी का और दूसरा भी लकड़ी का लेकिन उसमें एक छोटी से खिड़की जैसी बनी हुई थी। कोई आता तो पहले हम उसमें से देख लेते फिर दरवाजा खोलते। तो रिनी ने पहला दरवाजा खोला और  देखा कि ऊपर के फ्लैट में रहने वाला एक लड़का खड़ा है।  वो रिनी से बोला कि आपका डॉगी कहाँ है ? रिनी बोली वो तो घर पर ही है। वो बेचारा शरीफ लड़का बोला कि एक बार देख तो लीजिये कहीं यह डॉगी आपका तो नहीं है। जब रिनी ने देखा तो जिनी उस लड़के के साथ खड़ी थी। हमें समझ ही नहीं आया कि वो कब से घर बाहर गयी। इस घटना के बाद तो हम सभी बेहद सतर्क लगे कि पता नहीं कब वो घर बाहर निकल जाये।


थोड़ी देर के लिये हमसे वो बिछुड़ी थी तो हम सब पागल हो गये थे। अब जबकि वो हमेशा के लिये हमसे बिछुड़ गयी है तो आप ही सोचिये हम कैसे अपने को संभाले। बहुत सारे लोगों को लगेगा हम सब एक कुत्ते के बारें लिख कर या पढ़ कर अपना समय बर्बाद कर रहे हैं।  नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं है। जिस किसी ने भी एक बार भी कभी कोई पैट  अपने घर में लाया होगा और उसने उसे अपने घर का सदस्य माना होगा और जब कभी भी वो उससे बिछुड़ा होगा वो भली भाँति हमारे दर्द से परिचित होगा। जिनी एक कुत्ता की पैदाइश जरूर थी लेकिन वो थी बिलकुल ही शांत। छोटी थी तब उसने जरूर शैतानियाँ की, जैसे सभी बच्चे करते हैं लेकिन उसने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे हमारा कोई भी नुकसान हुआ हो।                   


२८ सितंबर को जिनी को हमसे बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो गया। एक - एक दिन कैसे मैंने उसके बिना बिताया है, मैं ही जानती हूँ।  'जिनी मेरा बच्चा "  मैं मैंने जो कुछ लिखा है वो बस मेरी और जिनी की यादें हैं या यूँ कहे कि उसे याद करने का मेरा एक तरीका है। वो हमेशा मेरी बेटी रहेगी। एक ऐसी बेटी जो बहुत ही प्यारी थी। उसने मुझे भी प्यार करना सिखाया। आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे दिलों में वो हमेशा ही रहेगी। वो जहाँ भी है खुश रहे। 

मेरी तरफ से उसे ढेर सारा प्यार।